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सोचता था अक्सर मैं कि मेरे वजूत में ईश्वर होगा, पर आज एहसास हुआ कि शैतान भी छुप कर मुझमें बैठा है

सोचता था अक्सर मैं कि मेरे वजूत में ईश्वर होगा पर आज एहसास हुआ कि शैतान भी छुप कर मुझमें बैठा है मुझे हर वक़्त ये लगता था कि मेरा हर कदम सही होगा पर अब ये मैंने जाना है कि हर रास्ता सही नहीं होता है मुझे खुद पर गर्व था कि मेरा कोई कर्म गलत नहीं होगा सच पूछो तो अब ये जाना है कि गर्व थोड़ा ज्यादा हो तो वो घमंड ही होता है सोचता था अक्सर मैं कि मेरे वजूत में ईश्वर होगा पर आज एहसास हुआ कि शैतान भी छुप कर मुझमें बैठा है सोचने में जाने क्यों हर वक़्त खुद ही नायक होता था अब दर्पण में देखा तो जाना कि खलनायक भी ऐसा ही होता है मैं यही विचार करता था कि जल्द ही वो समय होगा जब हर व्यक्ति मुझसे सहायता लेगा मुझमे छुपा शैतान ये बता ना सका कि सहायता वही लेता है जो तकलीफ में होता है सोचता था अक्सर मैं कि मेरे वजूत में ईश्वर होगा पर आज एहसास हुआ कि शैतान भी छुप कर मुझमें बैठा है 

क्यों कभी चुप रह जाया करता हूँ ...
क्यों कभी कुछ बातों को बस खुद को ही बताता हूँ ...

क्यों कभी चुप रह जाया करता हूँ क्यों कभी कुछ बातों को बस खुद को ही बताता हूँ जाने क्यों और कब से, बात करता हूँ बस खुद से दुनिया भर के लोगो से मिलकर भी जो ना कहता हूँ उनसे खैर दुनिया भर से कौन भला कुछ कह पाता है लेकिन दोस्त, हर किसी के सुख दुःख सांझे होते हैं जिनसे जाने क्यों उन दोस्तों से भी कुछ बात छुपा जाता हूँ जब लगता है कि कह ना दूँ उनसे, तभी खामोश हो जाता हूँ क्यों कभी चुप रह जाया करता हूँ क्यों कभी कुछ बातों को बस खुद को ही बताता हूँ कभी लगता है कि चिल्लाकर बता दूँ सबको कि हाल क्या है दिल के फिर लगता है कि जो हाल है उसको बताऊंगा कैसे कभी लगता है की मुश्किल हो रहा है जीना मेरा यूँ ही तन्हा चुप रहके फिर लगता है कि जो किसी को पता चल गया तो जीऊंगा कैसे जब देखता हूँ किसी अनजान को तो लगता है की इसको ही बोल देता हूँ फिर उस अनजान के जानकार निकलने के अंदेशे से ही रुक जाता हूँ क्यों कभी चुप रह जाया करता हूँ क्यों कभी कुछ बातों को बस खुद को ही बताता हूँ जाने कैसे कोई चुप रह सकता है इस कदर जाने कैसे बातों को छुपा जाती हैं मेरी नज़र जाने कैसे खामोश रह जाती है मेरी ज

कुछ दूर चले थे साथ में, आज दूर हो गए ...
ना जाने कब हम अपनी ज़िंदगी में इतने मशरूफ हो गए ...

कुछ दूर चले थे साथ में, आज दूर हो गए ना जाने कब हम अपनी ज़िंदगी में इतने मशरूफ हो गए हम जब भी साथ होते थे, तभी खूब मस्ती होती थी तब सपने हमारे बहुत मंहगे थे और खुशिया बड़ी सस्ती होती थी गली के उस छोर पर जब, हम सब खड़े हो जाते थे कोई जब घर से दौड़ा ना आये, तो उसका नाम गली से ही चिल्लाते थे जब एक मैच में जीतने वाले की, नए मैच में बैटिंग पहले होती थी वो भी एक वक़्त था जब दोस्तों के लिए हमारे वक़्त की कीमत टेनिस बॉल से भी सस्ती होती थी आज जाने फिर कहाँ चिन्टु के वो बैट बॉल खो गए ईंटों का विकेट तो आज भी वहाँ रखा है बस हम ही दूर हो गए कुछ दूर चले थे साथ में, आज दूर हो गए ना जाने कब हम अपनी ज़िंदगी में इतने मशरूफ हो गए मुझे याद है जब बारिश के पानी की नदीयाँ बहा करती थी  उन नदीयों के पानी में हमारी कश्ती चला करती थी  बारिश से हवा में थोड़ी ठंडक और मौसम घनघोर होता था  बिजली चली जाने से घर में अंदर सन्नाटा, लेकिन गलियों में शोर होता था  जब बारिश रुक जाने पर हम गलियों में भटका करते थे  शक्तिमान के किस्से होते और साइकिल चलाया करते थे  आज जाने क्यों उन गलियो के शहंशाह खो गए 

कभी कभी देर रात एक आहट-सी सुनाई देती है ...
दूर कही ख़ामोशी में कोई हरकत-सी सुनाई देती है ...

कभी कभी देर रात एक आहट-सी सुनाई देती है दूर कही ख़ामोशी में कोई हरकत-सी सुनाई देती है जब भी कभी मैं जागता रह जाता हूँ और ये जहां सो जाता है जाने क्यूँ उस वक़्त ये खामोश जहां भी चुपके से बात करने आता है आस पास जब कोई नहीं और हवा में सन्नाटा छाता है तभी जाने कहाँ से सन्नाटे को चीरता हवा का झोंका भी बात करने आता है हवा भी अपने झोंके से कुछ बात धीरे से कहती है दूर कही ख़ामोशी में कोई हरकत-सी सुनाई देती है कभी कभी देर रात एक आहट-सी सुनाई देती है दूर कही ख़ामोशी में कोई हरकत-सी सुनाई देती है रात के अँधेरे में दीवारें के नयन भी घूर कर देखा करते हैं और हमने तो बस सुना था ये क़ि दीवारों के भी कान होते हैं दीवारों पर लगी घडी के कांटे भी जोर जोर से टिक टिक करते हैं इसलिए ही शायद लोग कहते हैं की वक़्त के कहां कोई पाँव होते हैं यूँ गुजरते वक़्त की रफ़्तार भी शायद कुछ कहती है दूर कही ख़ामोशी में कोई हरकत-सी सुनाई देती है कभी कभी देर रात एक आहट-सी सुनाई देती है दूर कही ख़ामोशी में कोई हरकत-सी सुनाई देती है

कभी कभी मुझे, कुछ बात करने का मन होता है

कभी कभी मुझे, कुछ बात करने का मन होता है , वक़्त बेवक़्त बस यूँही, अल्फाज़ पिरोने का मन करता है । यूँ तो दुनिया में बहुत-सी अजीब-सी बातें हैं, और बातों में सिमटी अजीब-सी दुनिया है । कहते हैं दुनिया में कुछ नायाब अजूबे हैं, मैं कहता हूँ, एक नायाब अजूबा हमारी ये दुनिया है । दुनिया में जो भी कुछ अजीब-सी बातें हैं, उन बातों से दुनिया को समेटने का मन होता है । वक़्त बेवक़्त बस यूँही, अल्फाज़ पिरोने का मन करता है ।। कभी कभी मुझे, कुछ बात करने का मन होता है , वक़्त बेवक़्त बस यूँही, अल्फाज़ पिरोने का मन करता है । यूँ तो जहाँ में कई किस्से अधूरे हैं, उन अधूरे किस्सों की अधूरी सी दुनिया है ।  कहते हैं कोई किस्सा नहीं रहता अधूरा है, जो अधूरा रह जाए, वही तो यादगार किस्सा है ।  दुनिया में जितने भी अधूरे-से किस्से हैं, सभी को क्यों उन अधूरे किस्सों को पिरोने का मन होता है । वक़्त बेवक़्त बस यूँही, अल्फाज़ पिरोने का मन करता है ।। कभी कभी मुझे, कुछ बात करने का मन होता है , वक़्त बेवक़्त बस यूँही, अल्फाज़ पिरोने का मन करता है । यूँ तो कहने को जहन में बहुत-सी ही बातें हैं, मगर बात